अखिल भारतीय उत्तराखंड महासभा इंडिया।
संगठन की तरफ से हरेला पर्व पर बरेली महासभा में कुछ इस तरह हरेला पर्व के बारे में संगठन अध्यक्ष चंद्रदत्त जोशी जी ने बताया।
उत्तराखंड एक खूबसूरत छोटा सा प्रांत है जो पहाड़ों से सजा हुआ है और इसमें अनेकों फूलों की घाटियां हैं।
पहाड़ की संस्कृति और इसके त्योहारों का प्रकृति के साथ खास रिश्ता है।

त्योहारों के इन्हीं रिश्ते की डोर से पहाड़ का जनमानस जुड़ा हुआ है। दरअसल हरियाली का प्रतीक हरेला लोक पर्व ना सिर्फ एक पर्व है बल्कि एक ऐसा अभियान है जिससे जुड़कर तमाम प्रदेशवासि वर्षों से संस्कृति और पर्यावरण दोनों को संरक्षित करते आ रहे हैं।
हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है। हरेला का मतलब है हरियाली।
उत्तराखंड में गर्मियों के बाद जब सावन शुरू होता है तब चारों तरफ हरियाली नज़र आने लगती है उसी वक्त हरेला पर्व मुख्य रूप से मनाया जाता है।
यह पर्व खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है जिसे उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
हरेला लोक पर्व जुलाई के महीने में मनाया जाता है।
9 दिन पहले मक्का गेहूं सरसों जैसे 7 तरह के बीज बोए जाते हैं और इसमें पानी दिया जाता है।
कुछ दिनों में ही इससे अंकुरित वृक्ष निकलते हैं।
उसी को हरेला कहते हैं।
उन वृक्षों को घर के बुज़ुर्ग लोग काट कर लाते हैं और छोटे बच्चों के सर पर रखते हैं। कहीं-कहीं ऐसा भी होता है उन वृक्षों को देवताओं के चरणों पर चढ़ाया जाता है।
अपने शब्दों में और संगठन की ओर से मैं भारत वासियों से अपील करता हूं बहुत संख्या में वृक्ष लगाएं धरती को परिपूर्ण बनाएं।
वृक्ष है तो जीवन है।
वृक्ष ही हमारी पृथ्वी की जान है।
यही पृथ्वी को अपने से जकड़े हुए है।
हमारे भारत में बहुत से जीव जंतु वृक्षों के आधार पर ही जीवित रहते हैं।
हम लोग अपने जीवन यापन के लिए लकड़ी का बहुत उपयोग करने लगे हैं।
हमारी इमारतें लकड़ी बगैर अधूरी है।
जबकि हमारी आने वाली पीढ़ी है उनको हम वह वृक्ष नहीं दे सकेंगे जो हम देख पाए। इसीलिए भारत वासियों से कहना है जितना हो सके वृक्ष रोपण करें व बीज रोपण करें अनुशासन का पालन करें। जय हिंद
