अंजुम क़ादरी की कलम से
छोड़ आये सभी ग़म पुराने ।
ढ़ूँढ़ डाले नये आशियाने ।।
ज़ख्म महफ़िल सजा क्यों दिखाए
मुस्कुराते रहेंगे तराने ।
हम छले जा रहे ये पता है
आज अपनों ने छीने ठिकाने ।
दर्द आँसू विरासत में पाय
लोग करते गये हैं बहाने ।
कोई लम्हा नहीं ऐसा गुज़रा
जब नहीं आये यादें बुलाने ।
मुंतज़िर हैं अभी शौक़ उनके
सामने ही लगे वो गिराने ।
रो पड़े जब गले मिल के हम तुम
मिल गये इश्क़ के हर ख़ज़ाने ।
तोड़ दे बंदिशे आज ✍🏻🙏
हम लगे फिर यहाँ मुस्कुराने।