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प्लास्टिक को समाप्त करने की 2016 में अंजुम क़ादरी ने भरी थी हुंकार, 2022 में मोदी सरकार ने इस हुंकार को किया स्वीकार✍🏻

Zakir Ansari by Zakir Ansari
July 7, 2022
in सितारगंज
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प्लास्टिक को समाप्त करने की 2016 में अंजुम क़ादरी ने भरी थी हुंकार, 2022 में मोदी सरकार ने इस हुंकार को किया स्वीकार✍🏻

ब्यूरो रिपोर्ट ज़ाकिर अंसारी हल्द्वानी

ब्यूरो रिपोर्ट ज़ाकिर अंसारी हल्द्वानी

जल प्रदूषित नभ प्रदूषित धरती बन रही बांझ प्लास्टिक के ज़हर के कहर से कैसे पाएं निज़ात

2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी सिंगल प्लास्टिक पर रोक लगने की बात कही।
2022 यानी प्रजेंट में उत्तराखंड मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने भी सिंगल प्लास्टिक का यूज़ बंद करने पर लिया कड़ा एक्शन।
भारत सरकार द्वारा सिंगल प्लास्टिक पर रोक लगते देख प्रसन्न है अंजुम क़ादरी जी।
2016 में कुछ इस तरह से लिखा था प्लास्टिक पर आर्टिकल।
प्रस्तुत लेख में प्लास्टिक की प्रकृति उससे होने वाली हानियां प्लास्टिक अपशिष्ट के निष्पादन के उचित तरीके व खतरों से निज़ात पाने के तरीकों से जनसाधारण को जागरूक करने का प्रयास किया गया है। समस्या समाधान के पुनीत यज्ञ में आहुति हेतु आग्रह है।


विज्ञान ने मानव की आवश्यकता को पूरा करने में अतुलनीय योगदान दिया है।
दूसरे विश्व युद्ध के समय ऐसी वस्तुओं की ज़रूरत महसूस की गई जो हल्की व मज़बूत होने के साथ-साथ गर्मी से प्रभावित न होती हों। कीड़े मकोड़े व पानी का असर जिस पर न हो। तेज़ाब जैसे रसायन भी बेअसर हों।
आज से लगभग 136-161 वर्ष पूर्व सेलुलस नाइट्रेट व कपूर से सेलुलाइड बनाया गया जो वर्तमान प्लास्टिक का जनक है। आवश्यकता होने पर नाॅइलॉन सिलिकॉन व टेफलोन बनाये गये जो हल्के-फुल्के होने के साथ-साथ मज़बूत भी थे।
द्वितीय विश्व युद्ध तक प्लास्टिक का उपयोग सेना तक ही सीमित था।


युद्ध समाप्ति पर सेना में इसकी मांग समाप्त हो गई।
लेकिन तब तक यह रंग के योग से और भी खूबसूरती धारण कर चुकी थी।
जनता के बीच इस ने पैर जमाना शुरू कर दिया था।
देखते ही देखते 50 60 वर्षों में ही पूरी दुनिया पर काबिज़ हो गई। 1906 में मज़बूत प्लास्टिक बैकेलाइट भी बना।
भारत भी इससे अछूता ना रहा।
1960 में हमारे देश में भी पॉलिथीन ने अपना पहला कदम रखा।
आज विश्व में प्रतिदिन 300 मिलियन टन प्लास्टिक बनता है। लचीला टिकाऊ व सस्ता होने के कारण इसने उपभोक्ता पर शिकंजा कस लिया है। आज भारत में 28 टन प्लास्टिक व पॉलिथीन की खपत है।
यह हमारे जीवन के अभिन्न अंग बन गये हैं। चाहे दूध हो या कोल्डड्रिंक सभी प्लास्टिक पैकिंग में आने लगे हैं।
आज हर व्यक्ति महसूस करने लगा है कि प्लास्टिक बिन जीवन कैसा?


सन 2003 में किए गए सर्वे के अनुसार हमारे देश में प्रतिदिन 10,000 मैट्रिक टन कचरे का लगभग 15% प्लास्टिक है जिसका 40% केवल पॉलिथीन बैग्स हैं।
यूज एंड थ्रो।
इस्तेमाल करो और फेकदो।
संस्कृति के कारण प्लास्टिक के ढेर हर जगह दिखाई देने लगे हैं।
प्लास्टिक के अत्यधिक उपयोग से जीवन नारकीय हो चला है। बिना सोचे समझे प्लास्टिक जैसे साधन पैदा करके पर्यावरण को विनाश के कगार पर खड़ा कर दिया है। पिछले 10 -15 सालों में इसने और भी तेज़ गति से पैर पसारे हैं।
पॉलिथीन अपशिष्ट ने स्वच्छता व मानव स्वास्थ्य के लिए भयावह स्थिति पैदा कर दी है। ठोस व तरल अपशिष्ट के सही निपटान के अभाव में अनेक बीमारियां फैल रही हैं। प्लास्टिक अपने जन्म से लेकर डिस्पोज़ल तक पर्यावरण को खतरा है। इसका निर्माण पेट्रोलियम पदार्थों से होता है जो उत्पादन के समय ही जल प्रदूषण को जन्म देते हैं। 50,000 पॉलिथीन बैग बनाने में 17 किलो सल्फर डाइऑक्साइड गैस वायुमंडल में समाहित हो जाती है।


जो पेड़ पौधों वायुमंडल को नुकसान पहुंचाती है।
उत्पादन के बाद तो यह पर्यावरण ही नहीं मानव को भी जानलेवा बीमारियों की सौगात भी देता है।
रसोई घर में काम आने वाले रंगीन डिब्बों में मसाले हल्दी मिर्च व नमक चीनी दालें इत्यादि रखे जाते हैं।
यह प्लास्टिक में मौजूद रसायनों को अपने में मिलाकर अग्नाशय के रोग व कैंसर उपहार में देते हैं।
सुविधा के चक्कर में दूध दही व चाय इत्यादि पॉलिथीन में लाकर हम गठिया चर्म रोग व हृदय संबंधी रोगों को निमंत्रण दे रहे हैं।
प्लास्टिक की बाल्टी में गर्म पानी भरकर स्नान करने से एक्जिमा व खाज-खुजली जैसे रोगों के होने की संभावना बनी रहती है।
जो कि आज के वक्त में पूरे भारत में सबसे ज्यादा मरीज़ खाज खुजली के ही लाइन में लगे मिलते हैं।
इतना ही नहीं पॉलिथीन रेजिन का हानिकारक तत्व पानी में मिलकर वक्ष, पेडू व प्रजनन अंगों में रोग पैदा करता है जिसमें प्रमेह स्तनजन्य रोग प्रमुख है।
रसोई में पुनः चक्रित प्लास्टिक के संसर्ग में आने के कारण महिलाएं उच्च रक्तचाप की शिकार बनती है। प्लास्टिक खिलौनों में मिले खतरनाक पदार्थ आर्सेनिक व केडमियम बच्चों को सदा सदा के लिए खामोश कर देते हैं।
इतना ही नहीं खिलौनों को लचीला बनाने में प्रयुक्त थैलियम ज़हर पेट में पहुंचकर उन्हें भी विमंदित बना देता है।
यह भी माना जाता है


कि मां के गर्भ में पल रहे शिशु भी प्लास्टिक के प्रभाव से नपुंसक तक हो सकते हैं।
फ्रॉड फ्रॉड – वोम के मुताबिक प्लास्टिक के उपयोग के कारण नर पशुओं में नर होने के तकरीबन लक्षण ही बदल जाते हैं।
संभव है कि भविष्य में पुरुषों में बहुत से लक्षण महिलाओं जैसे दिखाई देने लगें।
जो कि इस वक्त हम हर जगह देख सकते हैं मर्दों में औरतों वाली हरकतें ज़्यादा पाई जा रही हैं। घर का कचरा बची हुई सब्ज़ियां व अन्य खाद्य सामग्री हम प्लास्टिक की थैलियों में फेंक देते हैं।
खुले में घूमते हुए पशु खाद्य सामग्री के साथ प्लास्टिक की थैलियां भी निगल जाते हैं।


यह उनके पेट में जमा हो जाती है इन को पचाने की दवा बनाने में कामयाबी अभी तक हासिल नहीं हो सकी है।
इस कारण प्रतिवर्ष 50 लाख पशुधन काल का ग्रास बनता है जिससे हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
प्लास्टिक थैलियां नष्ट न होने के कारण सफाई व्यवस्था में भी व्यवधान पैदा करती हैं।
20% सिल्वर लाइनों में रूकावट होने का यही कारण है।
1998 में मुंबई शहर में सीवर नेटवर्क के जाम हो जाने के कारण कृत्रिम बाढ़ तक आ गई थी।
यह पॉलिथीन वर्षा ऋतु मे ज़मीन में धंस जाती है।
धरती की उर्वरा शक्ति कमज़ोर हो जाती है।
सिंथेटिक कूड़े की मात्रा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करती है।
इस समस्या से निज़ात पाने के लिए ऐसे कूड़े को जलाना भी उपयुक्त समाधान नहीं है।
यह पॉलिथीन के पूर्ण रूप से न जलने तथा विषाक्त गैसें उत्पन्न करने के कारण है।
पी वी सी जलने पर कार्बन डाइऑक्साइड व
Furons इत्यादि पैदा होते हैं जिससे बुद्धिहीनता बांझपन व कैंसर होने की संभावना होती है।
पर्यावरण विशेषज्ञ बिट्टू सहगल का मानना है कि पिछले 16 वर्षों से पॉलिथीन समुद्र में ऑक्सीजन को रोककर मछलियों व समुद्री जानवरों को मौत के घाट उतार रही है।


गांव व शहरों में जहां-जहां कूड़े करकट के ढेर लगे होते हैं वहां गर्मी के मौसम में इसकी विषाक्तता और भी बढ़ जाती है।
पोलिस्टिरीन जलाने से क्लोरो फ्लोरो कार्बन निकलती है जो जीवनदाई ओजोन मंडल को नष्ट कर धरती पर प्रलय कर सकती है। प्लास्टिक हमारी 15 से 25 पीड़ियों तक पूर्ण रूप से नष्ट नहीं होती। न तो प्लास्टिक को जलाया जाना उचित है और न ही उसे ज़मीन में गाड़ा जाना।
इससे जल थल व नभ तीनों ही सुरक्षित नहीं हैं।


प्लास्टिक मानो हिरण्यकश्यप की तरह न सर्दी में न गर्मी में न जल में न थल में मरने का वरदान प्राप्त कर चुकी है।
आज सारा संसार प्लास्टिक में हो गया है। बिना प्लास्टिक जीवन कैसा फिर भी समस्या के समाधान के कुछ पहलुओं पर विचार-विमर्श की आवश्यकता समीचीन है।
वास्तव में प्लास्टिक उत्पाद अधिकांश लघु उद्योगों में होता है।
जहां गुणवत्ता से समझौता निर्धारित मापदंडों का पालन नहीं किया जाता है।


प्लास्टिक अपशिष्ट का मोटाई के आधार पर खाद्य अखाद्य के आधार पर तथा पुनर्चक्रणशील तथा अपुनर्चक्रणशील के आधार पर पृथक्करण करना चाहिए।
सामान्यता 3 – 4 चक्रणों के बाद प्लास्टिक सर्वथा अनुपयुक्त हो जाता है। हमें पर्यावरण के अनुकूल प्लास्टिक प्रौद्योगिकी विकसित करने की आवश्यकता है।
आज करीब 2500000 लोग कचरा बीनने में लगे हैं।
लगभग 600000 टन प्लास्टिक का पुनर्चक्रण हो रहा है।
ऐसी परियोजनाएं तैयार की जानी चाहिए जिनमें प्लास्टिक को गर्म करने की आवश्यकता ही ना पड़े।
नागपुर में अपशिष्ट प्लास्टिक के निष्पादन के लिए पर्यावरण अनुकूल उत्प्रेरक योजक प्रक्रिया का आविष्कार किया गया है जिसमें हाइड्रोकार्बन व गैस प्राप्त होती है।
ईंधन रूप में परिवर्तित करने की प्रक्रिया में विशेष अभीकल्पित रिएक्टर में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में 35000 डिग्री सेल्सियस पर रैंडम आधार पर डिपॉलीमराइजेशन किया जाता है।
इसमें ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।
1 लीटर हाइड्रोकार्बन ईंधन से 6 – 7 यूनिट बिजली का उत्पादन संभव है।
प्लास्टिक के ज़हर से निज़ात पाने के लिए उपभोक्ता उत्पादक व सरकार तीनों को ही जागरूक होना होगा। व्यक्तित्व जीवन में जागृति होना समष्टि जागृति का पहला कदम होगा।
निज से सर्वजन की ओर जीना है, प्लास्टिक संबंधित उत्तरदायित्व के साथ।
रस्सी, थैले, तकिये व शो पीस प्लास्टिक अपशिष्ट से बनाए जा सकते हैं।


प्लास्टिक अपशिष्ट को अलकतरा के साथ मिलाकर सड़कों का निर्माण व कमरों की छतें बनाई जा सकती हैं।
इसे पेट्रोल में बदलने का अभिनव प्रयोग भी किया जा रहा है।
तो आइये हम सब एकजुट होकर प्लास्टिक अपशिष्टों के उचित निष्पादन के लिए क्रांति का सूत्रपात करें।
जीवन में छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दें तो पूर्णता को प्राप्त कर सकेंगे
जो अपने आप में छोटी बात नहीं होगी।
समस्या के समाधान के कुछ इस प्रकार से हल सुझाये जा सकते हैं।
(1) यथा संभव जूट या कपड़े के उपयोग की आदत डालें।
(2) सस्ती व घटिया गुणवत्ता वाली पॉलिथीन की थैलियों में खाद्य पदार्थ ना डालें
(3) प्लास्टिक अपशिष्ट यथा निर्धारित स्थान पर कचरे पात्र में ही डालें।


(4) घर से निकाले हुए कचरे में से प्लास्टिक अलग करलें।
(5) प्रत्येक परिवार प्रतिदिन एक या दो पॉलिथीन की थैली कम करने का संकल्प करें।
(6) होटल से चाय सब्ज़ी या अन्य खाद पदार्थ पॉलिथीन की थैली में लाने की आदत छोड़े।
(7) पॉलिथीन की रंगीन थैलियों का उपयोग ना करें।
(8) पॉलिथीन के बढ़ते हुए खतरों से जनसाधारण को अवगत जागरूक कराया जाए।
(9) एक ही प्लास्टिक बैग को बार-बार प्रयोग में लाएं।
(10) बच्चों के खिलौनों के प्लास्टिक की गुणवत्ता पर ध्यान दें।
(11) 20 माइक्रोन से कम मोटाई की पॉलिथीन की थैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए।
(12) फोटोडिग्रेडेबल विधि से पॉलिथीन का निर्माण किया जाए।
(13) सरकार द्वारा गुणवत्तायुक्त प्लास्टिक एवं उसके विकल्प पर करों में छूट दी जाए।
(14) पॉलिथीन उत्पादक जो निर्धारित मापदंडों का पालन नहीं करते उन्हें कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान किया जाए।
(15) प्लास्टिक अपशिष्ट को अलकतरा के साथ मिलाकर सड़कों तथा भवनों की छतों के निर्माण में काम में लाया जाए।
(16) स्वास्थ्य को मानव का मौलिक अधिकार माना जाए।

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