ज़िंदगी की दौड़ में।
इस घनेरी होड़ में ।।
मैं कहां तक जी सकूं।
तुम कहां तक चल सको।।
गीत में अपने लिखूं।
तुम इन्हें गुनगुनाते रहो।।
ज़िंदगी की दौड़ में
न मैं कभी मरू ।
न तुम कभी थको।।
बस यूं ही चलता रहे।
ज़िंदगी का यह सफर।।
जिंदगी की दौड़ में।
इस घनेरी होड़ में।।
जिंदगी ने जो दिया।
मैंने वह हस के लिया।।
न कभी शिकवा किया।
न ही कोई गिला किया।।
एक बस ख्वाहिश रही।
मर्कर अमर हो जाऊं मैं।।
गुनगुनाए यह जहां ।
जब फना हो जाऊं मैं।।
ढूंढने निकले मुझे ।
और हर जगह पाए मुझे।।
जिंदगी की दौड़ में ।
इस घनेरी होड़ में।।
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अंजुम क़ादरी स्वरचित