एग्जाम में टॉपर होने के बावजूद,नवीन को यूक्रेन में मिली मौत
इस वक्त की बड़ी खबर, भारत, बेंगलुरु के नवीन की यूक्रेन के खारकीव शहर में हुई रूसी गोलाबारी में भारत के छात्र नवीन शेखरप्पा की मौत हो गई।नवीन का परिवार गहरे सदमे में है।
जिसके चलते सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कर्नाटक के हावेरी जिले के मेडिकल छात्र नवीन के पास,खाने-पीने का सामान खत्म हो चुका था। और वह कुछ खरीदने के लिए बाहर निकले थे। अचानक खारकीव के फ्रीडम स्कवॉयर पर वह एक रूसी रॉकेट हमले का शिकार हो गए। इस बीच नवीन के पिता शेखरप्पा ज्ञानगौदर ने देश के एजेकुशन सिस्टम पर सवाल उठाए हैं। शेखरप्पा का कहना है कि टॉपर होने के बावजूद नवीन को सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीट नहीं मिल सकी।
किसके चलते मजबूरी में बाजार जाना पड़ा,आपको बताते चलें,,टॉपर होने के बावजूद सरकारी सीट नहीं मिली, ये हमारे भारत की लाचारी है या कोई और,नवीन के पिता शेखरप्पा ज्ञानगौदर ने ‘हम अपने बेटे के लिए सपने देख रहे थे। जो सभी माता पिता देखते हैं।जो सब की सब टूट चुके हैं। पिता ने कहा मैंने अपने बेटे को एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए मजबूरी में यूक्रेन भेजा था।क्योंकि एसएसएलसी और पीयूसी एग्जाम में टॉपर होने के बावजूद उसे सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीट नहीं मिली थी।
रूस और यूक्रेन के बीच पिछले हफ्ते जंग शुरू होने के बाद नवीन ने एक बंकर में शरण ले रखी थी। परिवार के मुताबिक दिन भर में नवीन पांच से छह बार फोन करके अपना हाल बताते थे।यूक्रेन भेजना ज्यादा महंगा साबित हुआ नवीन के पिता सदमे में डूबे हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘उसे प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने के लिए मुझे 85 लाख से एक करोड़ रुपये खचज़् करने पड़ते। तभी मैंने फैसला किया कि उसे पढ़ाई के लिए यूक्रेन भेजूंगा।
लेकिन यह और ज्यादा महंगा साबित हुआ राजनैतिक-एजुकेशन सिस्टम और जातिवाद से निराश हूं नवीन के पिता शेखरप्पा ज्ञानगौदर ने उन्हें यूक्रेन भेजने के लिए अपने मित्रों और रिश्तेदारों से पैसे उधार लिए थे। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘एजुकेशन सिस्टम और जातिवाद की वजह से होनहार होने के बावजूद नवीन को एक सीट नहीं मिल सकी। मैं अपने राजनैतिक सिस्टम, शिक्षा व्यवस्था और जातिवाद से निराश हूं। सब कुछ प्राइवेट इंस्टिट्यूट्स के हाथों में है4 दिन से दोस्तों के साथ बंकर में थे नवीन और उस सुबह…नवीन कुछ दोस्तों के साथ एक अपार्टमेंट में रहते थे। नवीन के दोस्त अमित का कहना है कि स्थानीय समय के मुताबिक सुबह छह बजे नवीन बंकर से निकलकर सिटी सेंटर पर गए।
अमित उस दर्दनाक मंजर को बयां करते हुए कहते हैं, ‘सुबह सात बजकर 58 मिनट पर अपने एक दोस्त को नवीन ने फोन पर पैसा ट्रांसफर करने के लिए कहा। उसके बाद सुबह आठ बजकर 10 मिनट पर हमें एक कॉल आई, जिसमें कहा गया कि वह अब इस दुनिया में नहीं है।अमित ने आगे बताया कि हम चार दिन से पर्याप्त भोजन और पानी के बगैर बंकर में शरण लिए हुए थे। यह हमारे भारत की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाता है जिसके चलते अगर यही हाल हमारे भारत का रहा तो यहां के स्टूडेंट्स विदेश जाकर यूं ही अपनी जाने रहे।