



संपादक मुस्तजर फारूकी
कालाढूंगी सरकार जन-जन तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। सरकार अस्पतालों को सुविधाओं और संसाधनों से लैस किया जा रहा है, लेकिन इसी के साथ चिकित्सकों व कर्मियों की मनमानी भी बढ़ती जा रही है। अस्पताल कुव्यवस्थाओं की जद में हैं। चिकित्सकों की मनमानी भी चरम पर है। इससे मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। अगर रात में यदि कोई मरीज अस्पताल पहुंचता है तो उसका समुचित इलाज हो पाएगा भी या नहीं, यह कहना मुश्किल है। देर रात्रि कॉर्बेट बुलेटिन के संपादक जब अस्पताल में एक्सीडेंट हुए घायलो कि जानकारी लेने पहुचे तो मात्र एक डॉक्टर ही मौके पर मिले उनसे इस बाबत जब जानकारी जुटाई गई तो बह पत्रकार से ही गलत भाषा का प्रयोग करने लगे पत्रकार ने जब अस्पताल का पूरा मौका मोइना किया तो अंदर का दृश्य कुछ और ही बता रहा था। अंदर कुत्ता आराम फरमा रहा था। गंदगी चारों तरफ फैली हुई थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कई दिनों से यहां सफाई नहीं हुई हो। शौचालय की स्थिति काफी खराब थी। उसके बाहर गंदगी बिखरी पड़ी थी। अंदर की स्थिति भी ऐसी ही थी। इलाज के क्रम में जहां मरीजों को सुलाया जाता है वहां भी गंदगी बिखरी हुई थी, जबकि वहां डस्टबिन भी रखा था। अस्पताल में एक मात्र एक डॉक्टर अपने केबिन में बैठे थे। वहां न तो अन्य कोई पुरुष स्वास्थ्य कर्मी नजर आ रहा था और न ही कोई गार्ड। एक मरीज ने बताया कि अस्पताल में कोई भी सुविधा मरीजों को नहीं दी जाती है। प्रसव होने के बाद मरीज को अस्पताल में 24 घंटे रहने की बात कही जाती है, लेकिन उसके भोजन-पानी की कोई व्यवस्था नहीं की जाती है। जरूरी दवाइयां भी बाजार से खरीदकर लानी पड़ती है। और अस्पताल में जो दवा उपलब्ध नहीं है उसे मरीज बाहर से खरीद कर लाते हैं।

