इतनी गर्मी में होशला जब बड़ा हो तो कोई काम मुश्किल नहीं होता
हल्द्वानी शुक्रवार को इतनी गर्मी होने के बाद भी 7 साल के मासूम बच्चे ने भी रोज़ा रखने की जिद कर डाली, मां बाप ने लाख मना किया मगर बच्चे की ज़िद के आगे एक न चली,ना चाहकर भी रोजे की इजाज़त देनी पड़ी। रमजान के आखरी जुमे के साथ साथ इबादत का दौर भी जारी है। हल्द्वानी उत्तराखंड का मुख्य द्वार है। इन दिनों नन्हें रोजदार भी रोज़ा रखे देखे जा सकते हैं। पांच साल से लेकर 12 साल तक के बच्चों ने भी भूखे प्यासे रहकर अल्लाह की राह मे रोजा रखा हुआ है।
मुस्लिम इलाकों मे रमजान की रौनक घर से बाजारों तक में देखी जा रही है। हर तरफ अल्लाह की इबादत के लिए धार्मिक किताबें और टोपियां खरीदी जा रही हैं। ऐसे मे बच्चे भी अब अल्लाह की इबादत मे मस्जिदों की ओर रुख किए हुए हैं। एक ओर जहां गर्मी मे प्यास और भूख को बड़े-बड़े सहन नही कर पाते वहीं 5 साल से लेकर 12 साल तक के बच्चे 15 घंटे भूखे—प्यासे रहकर रोजा रख रहे हैं। मासूम मोहम्मद हसन अंसारी अभी 7 साल के हुऐ भी नही। मगर हौसला बड़ो का सा माशा अल्लाह, हसन अंसारी ने भी रोजा रखकर इस्लाम का एक फर्ज अदा किया तो बड़े भाई मोहम्मद अनस अंसारी 10 साल के हुए हैं, इन्होंने ने भी अल्लाह की राह में अपनी भूख—प्यास मिटा दी और कम उम्र से ही रोजा रखना शुरू कर दिया। ये होनहार बच्चे मोहम्मद ज़ाकिर अंसारी संपादक कॉर्बेट बुलेटिन न्यूज़ के प्यारे प्यारे दो फूल हैं
जिन्होंने अपना पहला रोज़ा रखकर साबित कर दिया है कि हम भी किसी से कम नहीं हैं। आज ये बच्चे अपने घर के बड़ों की तरह इबादत में अपना पूरा वक्त तो बिताते ही हैं, साथ ही स्कूल और अपने दोस्तों में नन्हे रोजेदारों के नाम से भी पहचाने जाने लगे हैं।
अल्लाह की रजा के लिए अगर कुछ करना है तो उसमें उम्र क्या, मौसम क्या और तकलीफें क्या? बस ठान लिया तो इसे पूरा भी करना है। कोरोना वायरस की बढ़ती दहशत के बीच स्कूल्स और कॉलेजेज बंद कर दिए गए हैं। क्लासेस भी ऑनलाइन चल रही हैं, जिसकी वजह से कहीं दौड़-भाग या चीख-चिल्लाहट भी नहीं करनी है। ऐसे में कम उम्र के बच्चे भी अल्लाह को राजी करने के लिए इस शिद्दत भरी गर्मी में रोजेदार बने हैं। कम उम्र के बाद भी इनके हौसले इतने ज्यादा हैं कि इन्हें देखकर घरवाले भी उन्हें इसके लिए मना नहीं कर पा रहे हैं। इनका तादाद एक्का-दुक्का नहीं, बल्कि काफी ज्यादा है।
नमाज फर्ज 12 साल की उम्र में होती है मगर ये मासूम 7 साल में ही रख रहे हैं रोजा।
मोमिनों में बच्चों के लिए 12 साल की उम्र में नमाज पढ़ना फर्ज किया गया है। इस उम्र तक वह नमाज के आदी हो जाएं, इसके लिए घर वाले पहले से ही उन्हें नमाज के लिए ताकीद शुरू कर देते हैं। मगर इन दिनों इस सोच में काफी बदलाव देखने को मिला है। घर का माहौल पाकर बच्चे खुद ब खुद दीन और इस्लाम की ओर मुतवज्जो हो रहे हैं और उसके अरकानों को बगैर किसी के कहे अपना रहे हैं। इसी कड़ी में अब नमाज फर्ज होने की उम्र वाले बच्चों ने भी रोजा रखना शुरू कर दिया है। छह, सात और आठ साल उम्र के यह नन्हें रोजेदार दिन भर अल्लाह की इबादत के साथ रोजा रख रहे हैं और उसे राजी करने की कोशिश कर रहे हैं। घर में रहकर बड़ों की तरह रोजा रख रहे हैं नन्हें रोजेदार
गर्मी की शिद्दत, प्यास की आजमाइश भी नहीं डिगा पा रही है हौसला अल्लाह की रजा के लिए रखा रोजा, वबा से निजात की मांगी दुआ, अल्लाह की रजा के लिए अगर कुछ करना है तो उसमें उम्र क्या, मौसम क्या और तकलीफें क्या? बस ठान लिया तो इसे पूरा भी करना है। कोरोना वायरस की बढ़ती दहशत के बीच स्कूल्स और कॉलेजेज बंद कर दिए गए हैं। क्लासेस भी ऑनलाइन चल रही हैं, जिसकी वजह से कहीं दौड़-भाग या चीख-चिल्लाहट भी नहीं करनी है। ऐसे में कम उम्र के बच्चे भी अल्लाह को राजी करने के लिए इस शिद्दत भरी गर्मी में रोजेदार बने हैं। कम उम्र के बाद भी इनके हौसले इतने ज्यादा हैं कि इन्हें देखकर घरवाले भी उन्हें इसके लिए मना नहीं कर पा रहे हैं। इनका तादाद एक्का-दुक्का नहीं, बल्कि काफी ज्यादा है।
दिन भर चल रही तैयारी
नन्हें मुन्नों को रोजा रखने के लिए मना न कर पाने वाले पेरेंट्स भी बच्चों की इस पहल में अब उनका साथ निभाने लगे हैं। सेहरी के वक्त उन्हें उठाना, जरूरत के मुताबिक खाना और पानी देने का ख्याल तो कर ही रहे हैं, वहीं दिन भर उनकी सेहत का ख्याल रखते हुए इफ्तार पर भी पसंदीदा चीजें बनाने में भी पीछे नहीं हट रहे हैं। कोरोना वबा के दौरान इज्तमाई इफ्तार तो नहीं हो पा रहा है, लेकिन घर वाले ही साथ मिलकर इन नन्हें-मुन्ने रोजेदारों का हौसला बढ़ा रहे हैं। बच्चे भी अल्लाह की रजा के लिए रोजा रखकर काफी खुश हैं। कोरोना वायरस
वबा से निजात की कसरत से दुआ की मासूम रोजेदारों की दुआ अल्लाह के नजदीक सबसे ज्यादा कबूल होती है। वहीं जब यह खुद अल्लाह के फरिश्तों जैसे नन्हें रोजेदार हों तो भला कबूलियत क्यूं न होगा? ऐसे में सभी नन्हें रोजेदारों के पेरेंट्स और घरवाले उन्हें हर नमाज में कोरोना से निजात दिलाने की दुआ करा रहे हैं। खासतौर पर इफ्तार के वक्त रोजा खोलने से पहले यह नन्हें रोजेदार इस आफत से निजात की दुआ मांग रहे हैं। साथ ही हमारे मुल्क की सलामती की भी दुआ करते हुए देखे जा रहे हैं। हमारे चैनल के संपादक जाकर अंसारी के दोनों बच्चों को रोजा रखकर रोशन किया साथ ही साथ में अपने रब को भी राजी करने के लिए रोजा रखकर साबित कर दिया कि हम भी किसी से कम नहीं।
नन्हें मुन्नों को रोजा रखने के लिए मना न कर पाने वाले पेरेंट्स भी बच्चों की इस पहल में अब उनका साथ निभाने लगे हैं। सेहरी के वक्त उन्हें उठाना, जरूरत के मुताबिक खाना और पानी देने का ख्याल तो कर ही रहे हैं, वहीं दिन भर उनकी सेहत का ख्याल रखते हुए इफ्तार पर भी पसंदीदा चीजें बनाने में भी पीछे नहीं हट रहे हैं। कोरोना वबा के दौरान इज्तमाई इफ्तार तो नहीं हो पा रहा है, लेकिन घर वाले ही साथ मिलकर इन नन्हें-मुन्ने रोजेदारों का हौसला बढ़ा रहे हैं। बच्चे भी अल्लाह की रजा के लिए रोजा रखकर काफी खुश हैं। कोरोना वायरस
वबा से निजात की कसरत से दुआ की मासूम रोजेदारों की दुआ अल्लाह के नजदीक सबसे ज्यादा कबूल होती है। वहीं जब यह खुद अल्लाह के फरिश्तों जैसे नन्हें रोजेदार हों तो भला कबूलियत क्यूं न होगा? ऐसे में सभी नन्हें रोजेदारों के पेरेंट्स और घरवाले उन्हें हर नमाज में कोरोना से निजात दिलाने की दुआ करा रहे हैं। खासतौर पर इफ्तार के वक्त रोजा खोलने से पहले यह नन्हें रोजेदार इस आफत से निजात की दुआ मांग रहे हैं। साथ ही हमारे मुल्क की सलामती की भी दुआ करते हुए देखे जा रहे हैं। हमारे चैनल के संपादक जाकर अंसारी के दोनों बच्चों को रोजा रखकर रोशन किया साथ ही साथ में अपने रब को भी राजी करने के लिए रोजा रखकर साबित कर दिया कि हम भी किसी से कम नहीं।
वबा से निजात की कसरत से दुआ की मासूम रोजेदारों की दुआ अल्लाह के नजदीक सबसे ज्यादा कबूल होती है। वहीं जब यह खुद अल्लाह के फरिश्तों जैसे नन्हें रोजेदार हों तो भला कबूलियत क्यूं न होगा? ऐसे में सभी नन्हें रोजेदारों के पेरेंट्स और घरवाले उन्हें हर नमाज में कोरोना से निजात दिलाने की दुआ करा रहे हैं। खासतौर पर इफ्तार के वक्त रोजा खोलने से पहले यह नन्हें रोजेदार इस आफत से निजात की दुआ मांग रहे हैं। साथ ही हमारे मुल्क की सलामती की भी दुआ करते हुए देखे जा रहे हैं। हमारे चैनल के संपादक जाकर अंसारी के दोनों बच्चों को रोजा रखकर रोशन किया साथ ही साथ में अपने रब को भी राजी करने के लिए रोजा रखकर साबित कर दिया कि हम भी किसी से कम नहीं।
