रिपोर्ट गिरीश चन्दोला
बागेश्वर। वैसे तो उत्तराखण्ड राज्य में पर्यटन की अपार सम्भावनाएं है पर सरकार की अनियोजित विकास योजनाओं ने पहाड़ के विकास के साथ ही यहां के पर्यटन के विकास पर भी कभी बल नहीं दिया। इसी का नतीजा है कि आज उत्तराखण्ड राज्य में नैनीताल जिले तक ही पर्यटन थम कर रह गया है। विगत कुछ वर्षो से पर्यटकों ने नैनीताल से बाहर अन्य क्षेत्रों में जाना कम कर दिया है। जिससे यहां के पर्यटन व्यवसाय बुरी तरह से प्रभावित होता दिख रहा है। एक और कच्ची सड़के, दूसरी ओर सड़कों पर बहता पानी, तीसरी ओर पर्यटकों के विश्राम गृहों में कमी इन सब बातों ने पहाड़ में पर्यटन को पूरी तरह से प्रभावित किया है। बागेश्वर से करीब 60 किमी दूर भनार गांव के चोटी में स्थित श्री 1008 मूलनारायण देवता का भव्य एवं आकर्षक मंदिर है। श्री मूलनारायण मन्दिर जाने के दो रास्ते है। एक रास्ता बागेश्वर कपकोट होते हुए भनार गांव तक सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है, जिस सड़क का हाल भी फिलहाल बेहाल ही है। भनार गांव से श्री मूलनारायण मंदिर लगभग पाच किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर ऊँची चोटी में स्थित है। दूसरा रास्ता बागेश्वर से काण्डा धरमघर होते हुए सनगाड गांव से गुजरता है जो बास्ती गांव तक सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। इस सडक मार्ग का हाल भी बेहाल ही है। थोड़ी सी बरसात भी यहां की यातायात व्यवस्था को पूरी तरह से तहस नहस करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती है। बास्ती गांव से श्री मूलनारायण मन्दिर की पैदल दूरी लगभग 5 किलोमीटर की है। जो कि एकदम खड़ी चढाई है।
इस मंदिर में नवरात्र में नवमी की रात को मेला लगता हैं यहाँ लोग झोड़ा, चाचरी के साथ मेले का खूब आनन्द लेते है। शिखर मूलनारायण मंदिर की ऊंचाई समुद्रतल से लगभग 9124 फिट तथा 2700 मीटर है। यहां हर वर्ष भक्तों का तांता लगा रहता है।
यहां के पंडित जी का कहना है कि यह मंदिर पहले छोटा सा था, बाद में इसे बद्रीनारायण दास जी ने बनवाया, उनका कहना है कि पहले इस मंदिर के बारे में लोगों को पता नहीं था।
इस मंदिर की पहाड़ी में शौका लोंग अपने भेड़ बकरीयों के साथ एक दो महिनें तक यही रहने आते थे, उनका कहना है कि शौका लोग बहुत धनी होते थे, उनका सोने का व्यापार चलता था। वो लोग सोने को अपने साथ ला कर इस मंदिर में रख देते थें एक दिन ऐसी बकरी चराने के बाद शाम को खाना खा के शौका सो गए जैसे सुबह शौका उठा और देखता है सारे बकरीयां और भेड़, जंगली जानवर बन चुके थे और जो सोना था वो पत्थर बन चुका था तभी शौका ये सब देख रोने लगा तभी मूलनारायण भगवान ने आवाज दी, अपने घर चले जा तुझे ये सब तेरे घर में मिल जाएगा, शौका अपने घर जौहार चले जाता और वहां देखता है उसका सोने का महल बना है। यह सब देख वह मंत्र मुक्त हो जाता है। इस प्रकार लोगों का मूलनारायण देवता पर अटूट विश्वास बना।
शिखर मूलनारायण मंदिर बांज के घने वृक्षों के बीच घीरा हुआ बहुत ही शान्त एवं अपार श्रद्वा का केन्द्र है। इस मंदिर से आप हिमालय की चोटी का सुन्दर नजारा देख सकते है। यहां से पंचाचूली, नंदा देवी पर्वत तथा पूरे हिमालय की चोटी का दर्शन कर सकते है। शिखर मूलनारायण मंदिर तक पहुचने के लिए काफी पैदल खड़ी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। यहा अभी सड़क मार्ग नहीं पहुँची है। भगवान मूलनारायण के दो पुत्र भी इसी शिखर से कुछ दूरी में स्थित है। इनके एक पुत्र का नाम बंजैण तथा दूसरे पुत्र का नाम नौलिंग है।
न्याय की देवी के दरवार की सड़क का हाल बेहाल
वैसे तो आमतौर पर उत्तराखंड राज्य को पर्यटन प्रदेश के रूम में विश्व मानचित्र पर ख्याति प्राप्त है और यहां की भौगोलिक परिस्थितियां भी काफी हद तक भारत के अन्य राज्यों की तुलना में काफी भिन्न है, पर अफसोस की राज्य की सडको का हाल दिन प्रतिदिन बेहाल होता नजर आ रहा है। आज हम बात कर रहे है पहाडो की न्याय की देवी कोटगाडी मैय्या के दरवार की। यह बागेश्वर और पिथौरागढ जिले के बार्डर पर स्थिति है। यह क्षेत्र गगोलीहाट विधानसभा के फाखु गाव में आता है। विगत कई वर्षो से हर वर्ष लगातार 1 या 2 बार मैय्या के दर्शन करने का अवसर मुझे मिलता रहा है। पर इस सड़क की दुर्दशा देख बडा अफसोस होता है कि यहा पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर सरकार ने महज खड्डनुमा सड़क ही दी है। जब भी इस सड़क को देखा यहा बड़े बडे खड्डडे ही देखने को मिले। यहा तक की इस सड़क से बडे बड़े घधेरे भी होकर गुजरने है जो थोड़ी सी ही बरसात में यहा के यातायात व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर देते है। जिससे आमजन को अक्सर कई असुविधाओ का सामना करना पड़ जाता है। ऐसे में महिलाओं को प्रसव पीड़ा के दौरान खासी मसक्कत करनी पड जाती है, जो कभी कभी उनकी जान को भी जोखिम में डाल देता है। वैसे राज्य ही नहीं अपितु राज्य से बाहर यानि देश विदेश के पर्यटक भी इस क्षेत्र में अक्सर घूमने आते है, पर अफसोस की यहा पर्यटन के क्षेत्र में विकास के नाम पर खड्डनुमा सडके ही देखने को मिलती है।
माॅ भद्रकाली मन्दिर का विकास पर्यटन को बढ़ावा देने में है सक्षम
वैसे तो उत्तराखण्ड पर्यटकों के घूमने के लिए सबसे बेहतरीन क्षेत्रों में से एक है, पर सरकार की अनियोजित योजनाओं ने यहां के पर्यटन व्यवसाय को पूरी तरह से क्षतिग्रस्त करने का कार्य किया है। एक ऐसा ही मामला माॅ भद्रकाली मन्दिर का भी है जो बागेश्वर जिले के सनिउडियार क्षेत्र में पड़ता है। माॅ भद्रकाली मन्दिर एक ऐसा मन्दिर है जिसमें एक गुफा भी है। जिस गुफा को अभी तक कोई भी आर पार नहीं कर पाया है। इस गुफा को दोनों ओर से देखा जा सकता है, एक ओर अंधेरा भरा रास्ता है तो दूसरी ओर से झरने के रूप में नीचे की ओर गिरता पानी का रास्ता है जो आगे चलकर अंधेरे में तब्दील हो जाता है। इस गुफा के आर-पार जाने का रास्ता तो है मगर अब तक कोई भी इस गुफा के आर-पार नहीं जा पाया है। यह क्षेत्र भी अपने विकास का रोना रो रहा है। शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा पहाड़ी क्षेत्रों पर अगर सरकार ने थोड़ा सा भी ध्यान दिया होता तो सायद आज पर्यटन के क्षेत्रों का समुचित विकास सम्भव हो पाता साथ ही रोजगार के क्षेत्र में भी वृद्वि देखने को मिलती।