25 सितंबर को किसान विरोधी तीन कानूनों के खिलाफ आहूत देशव्यापी विरोध का समर्थन करेगा
रिपोर्टर समी आलम हल्द्वानी
● मजदूर, किसानों व बेरोजगारों के हित में मोदी सरकार को गद्दी से उतारना वक्त का तकाजा है : के के बोरा
● मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों को समाप्त करने व सार्वजनिक क्षेत्र को बेचे जाने के खिलाफ ट्रेड यूनियन ‘ऐक्टू’ का बुद्धपार्क में प्रदर्शन
● किसान संगठनों द्वारा 25 सितंबर को किसान विरोधी तीन कानूनों के खिलाफ आहूत देशव्यापी विरोध का समर्थन करेगा ‘ऐक्टू’
देश के दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने आजादी के दौर से देश में लागू 44 श्रम कानूनों को मोदी सरकार द्वारा समाप्त कर अडानी-अम्बानी के पक्ष में इन श्रम कानूनों के बदले 4 कोड लागू करने जिसमें काम के घण्टे 8 से बढ़ाकर 12 घण्टा करना ,फैक्ट्री ऐक्ट को बदलना शामिल है व जनता की सवारी रेलगाड़ी,बैंक, बीमा, कोयला, रक्षा क्षेत्र,नवरत्न कम्पनी बीपीसीएल, आईओसी आदि सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों सहित देश की सम्पत्तियो-खदानों को देशी-विदेशी कॉरपोरेट घरानों को बेचे जाने व अंधाधुंध निजीकरण व निगमीकरण करने तथा बढ़ती बेरोजगारी,बेलगाम महंगाई, लॉकडाउन के दौरान अकथनीय कष्टों को झेलने वाले प्रवासी मजदूरों के साथ जुल्म-अत्याचार के खिलाफ 23 सिंतबर को देशव्यापी विरोध का आह्वान किया गया था जिसके तहत बुद्धपार्क हल्द्वानी में ‘ऐक्टू’ द्वारा प्रदर्शन किया गया व मजदूर विरोधी श्रम कोड की प्रतियां जलायी गई।ऐक्टू’ के प्रदेश महामंत्री कामरेड के के बोरा ने कहा कि, “मोदी सरकार ने मजदूरों को पूरी तरह पूंजीपति मालिकों का गुलाम बना रही है।
इसलिए भाजपा सरकार से किसी तरह की कोई उम्मीद पालने के बजाए इस सरकार को देश, मजदूर, किसान व बेरोजगारों के हित में गद्दी से उतार फेंकना ही आज की परिस्थितियों की तात्कालिक जरूरत है।”उन्होंने कहा कि, “मोदी सरकार एक ओर आपदा को अवसर में बदलने के नाम पर देश के मजदूरों द्वारा संघर्ष के बल पर प्राप्त श्रम कानूनों को खत्म कर रही है और दूसरी ओर देश की जनता की गाढ़ी कमाई से बने सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों और संपत्तियों को औने पौने दाम पर निजी पूँजी के हवाले कर रही है। कोरोना महामारी के भयानक दौर में संसद का इस्तेमाल सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के कानून लाने के बजाय बेहद शर्मनाक तरीके से मजदूर किसानों के खिलाफ काले कानून पारित करने में कर रही है। यह कतई जनविरोधी सरकार है।”ट्रेड यूनियनों के नेताओं ने प्रवासी समेत सभी मजदूरों को तत्काल 10 हजार रु लॉक डाउन भत्ता व अगले छह माह तक 7500 रु गुजारा भत्ता व रोजगार उपलब्ध कराने तथा मजदूर परिवारों के प्रति व्यक्ति 10 किलो मुफ्त राशन 6 माह तक देने,लॉक डाउन जनित कष्टों में मारे गए व दुर्घटना में जान गवाने वाले मजदूर परिवारों को 10 लाख रु मुआवजा ,महंगाई पर रोक,सभी खाली पड़े सरकारी पदों को अविलम्ब भरने, निजीकरण व निगमीकरण पर रोक लगाने, देश की सार्वजनिक सम्पत्तियों यथा रेल,बैंक,बीमा,कोयला खदानों की नीलामी – बिक्री पर तत्काल रोक सहित अनेकों मांगों को उठाया खासकर उत्तराखंड में समाप्त-शिथिल किये गए श्रम कानूनों को पुनः बहाल करने ,नई पेंशन स्कीम की जगह पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने,50 वर्ष में जबरन सेवानिवृत्त आदेश रद्द करने आदि मांगों को भी प्रमुखता से उठाया गया।इस अवसर पर किसान संगठनों द्वारा 25 सितंबर को संसद से पारित किसान विरोधी तीन काले कानूनों के खिलाफ आहूत देशव्यापी विरोध का समर्थन करने का प्रस्ताव भी लिया गया। विरोध प्रदर्शन में ऐक्टू नेता के के बोरा, डॉ कैलाश पाण्डेय, धन सिंह, ललितेश प्रसाद, नवीन कांडपाल, ललित मटियाली, ललित जोशी, नैन सिंह कोरंगा, कमल त्रिपाठी, जगदीश, नवजोत परिहार, उर्वा दत्त मिश्रा, सोनू सिंह, राजेन्द्र सिंह, भास्कर कापड़ी, विनोद कुमार, रविन्द्र पाल, हीरा सिंह, जगत सिंह जीना, आशीष आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे।