राइटर,अंजुम कादरी✍
सितारगंज से अंजुम कादरी अपनी कलम से लिखती हैं।आज साईकल दिवस है। और यह दिवस यूनाइटेड नेशंस जर्नल असेंबली द्वारा हर साल 3 जून को यह दिवस मनाया जाता है। आज ही के दिन साल 2018 में अंतरराष्ट्रीय साईकिल दिवस घोषित किया गया था। साईकल दिवस को मनाए जाने का प्रस्ताव अमेरिका के मोंटगोमरी कॉलेज के प्रोफेसर लेस्जेक सिबिलसकि ने याचिका दी थी।
साईकिल को हम जिंदगी का सबसे पहला एडवेंचर कह सकते हैं। गिरते पड़ते हम साइकिल चलाना सीखते हैं। उम्र के अनुसार साईकिल का भी अलग-अलग मतलब होता है। बचपन में शौकीन। फिर हम स्कूल जाना शुरू करते हैं। स्कूल से कब काम के लिए साईकिल इस्तेमाल करने लगते हैं। और फिर कब हमारा वज़न बढ़ जाता है।
और हम साईकिल को एक्सरसाइज के लिए इस्तेमाल करने लगते हैं। साईकिल हमें 1960 से लेकर 2000 तक खूब देखने को मिली। लेकिन 22 वर्ष हो गए हैं। साईकिल का क्रेज बिल्कुल घट गया है। कोई भी युवा साईकिल को चलाना अपने स्टैंडर्ड के खिलाफ समझ रहा है। ऐसा लगता है जैसे हमारी बदनामी हो जाएगी। जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। साईकिल तो एक ऐसा साधन है। जिस को यूज करने से हम सिर्फ अपना ही जीवन नहीं बचा रहे बल्कि हमारे पर्यावरण मे जीव-जंतु पेड़-पौधे जल आदि को प्रदूषित होने से बचा रहें हैं। आज हमारे भारत में पापुलेशन और पॉल्यूशन दोनों ही घातक होती जा रही है। दोनों विषय पर माननीय मोदी जी ने गंभीरता से सोच विचार कर निर्णय लिया है। मोदी जी ने डीजल,पेट्रोल पोलूशन वाली बढ़ती गाड़ियों पर बैटरी वाली गाड़ियों को ज़्यादा तरजीह दी है। साईकिल से हमें बहुत सारे फायदे हैं। साइकिल चलाने से हमारा वजन कंट्रोल मे रहता है। और हमारा पाचन तंत्र भी मज़बूत रहता है। लीवर से होने वाली अनलिमिटेड बीमारियां कंट्रोल में रहती हैं। हमारा हाज़मा दुरुस्त रहता है। किडनी व फेफड़ों का रक्तचाप नॉर्मल रहता है। युवाओं से गुज़ारिश की जा रही है। एक 2 किलोमीटर का अगर सफर है।
तो मोटर बाइक की जगह साईकिल का इस्तेमाल करें। इससे पोलूशन प्रदूषण पर काबू पाया जा सकता है। अपने जीवन के साथ साथ अपने से जुड़े सारे ही जीवन को जीवनदान मिलता है। और खास बात तो यह है। साईकिल चलाने से इम्यूनिटी बढ़ती है। इस तरह से यदि हम सब छोटी छोटी बातों का ख्याल रखेंगे। तो खुद को बहुत ही मजबूत कर लेंगे। हम सुनते हैं हम से पहले जो नसल थी। वह बहुत ताकतवर थी। जबकि उस वक्त खाने के भी लाले पढ़ते थे। उन लोगों को भरपेट भोजन अच्छा भोजन नहीं मिल पाता था। चना और बीजढी की रोटियां खा कर पानी पीकर गुड़ आदि खाकर रहते थे। उस वक्त कृषि में जैविक अजैविक सिस्टम था। पेड़ पौधों की भरमार थी। हर तरफ हरियाली ही हरियाली थी। कहीं भी कोई भी डीजल पेट्रोल या धुएं वाली गाड़ियां नहीं दौड़ती थी। चिट्ठी भी घुड़सवार कबूतर आदि द्वारा भेजी जाती थी।
यही कारण था। वह लोग हमसे ज़्यादा ताकतवर और हमसे ज़्यादा जिंदगी जिए हैं। हमें आज वह सब तो नहीं मिल सकता। लेकिन संशोधन हमारे बस में है हम कर सकते हैं।