अन्न दाता को भी दें सम्मान
ऋषी महात्मा हम नही बिन अन्न जीवित रह जायें , उदाहरण हम सब के सामने है यह एक माह से भी अधिक का लांकडाउन इस वैश्विक महामारी से ,अभी सिर्फ और सिर्फ मानव जाति को प्राणी जगत को चाहिए तो वो है इस धरती मां पर अन्न दाता द्वारा उगाया गया अन्न ,साग ,सब्जी ,(जन जन की है यही पुकार अन्न बिना सूना संसार) प्रकृति ने एक सीधा संकेत किया है भौतिक जगत में खोगये प्राणियों मेरी माटी पर उगने वाले इस अन्न और अन्नदाता (किसान) को मत भूलो , किसान का पुत्र होने के नाते , प्रकृति से लगाव पर्यावरण प्रेमी होने के नाते बार बार जहन में प्रकृति, धरती मां और किसान के लिए चिन्तित सा रहता हू तो अपने विचार साझा करता हू ,गेहू जौ तैयार हो चुके है दादी ने बोला शुक्रवार सही वार है शुक्रवार से जौ ,गेहू काटना शुरु करेंगे सुबह उठे एक धुपैनी(जिसमें धूप दी जाती है ) में कोयले रखे उसमें घी और पाती की धूप बनाई और जौ के खेत में धूप दी अन्न देने वाली धरती मां को प्रणाम किया तब गेहू ,जौ काटना आरम्भ किया ,फिर जब गेहू की मढाई हो जाती है तो तब भी शाम के समय सब गेहू को एक जगह बाहर रखकर उसमें धूप देते है ,अन्न खाने से पहले मंदिरों में भी चडाया जाता है , मतलब पहाड में अन्न को भगवान ही माना जाता है ,जिस आंगन में गेहूं अनाज को रखा जाता है वहां हम चप्पल जूते पहनकर भी नही जा सकते , बहुत बडा सम्मान अन्न को दिया जाता है ,पर वर्तमान भौतिक जगत की दौड में यह प्रश्न जरूर उठता है कि खेती कौन करेगा अन्न कौन उगायेगा , क्योंकि किसान का बेटा किसान नही बनना चाहता ,बनना भी चाहे तो हमारी महामहीम सरकारों का पूर्ण सहयोग किसान अन्न दाता को नही मिलता , हमारी युवा पिढी को अनाज कब उगता है कब कटता है कब दालें उगती है कब तैयार होती है अधिकतर को नही पता होगा ,जनसंख्या वृद्धि के इस दौर में अन्न की मांग बहुत अधिक बडती रहेगी ,पर अन्न उगना कम हो रहा है और होता रहेगा , मेरा एक निवेदन सरकारों से भी है और मानव जाति से भी है किसानों को भी सम्मान दें साथ ही हमें भी प्रण लेना चाहिए हम अपनी भूमि को बंजर ना होने दें कुछ ना कुछ इस पर अवश्य उगायें ये धरती मां है एक बीज बोओगे तो सौ बीज देगी ।।